बदलेगी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया, सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच टकराव
जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार में टकराव जारी है। दोनों की तनातनी के बीच सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने पहली बार हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में रॉ और आईबी की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया। जजों के प्रस्तावित नामों और कॉलेजियम पर केंद्र सरकार की आपत्तियों का भी खुलासा किया है।
ऐसे में एक बार फिर से सवाल उठने लगा है कि क्या जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव होगा? सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच टकराव का क्या कारण है? केंद्र सरकार ने कॉलेजियम को लेकर अपनी आपत्तियों में किन-किन बिंदुओं को उठाया है? आइए समझते हैं…
पहले समझिए क्या है कॉलेजियम व्यवस्था?
दरअसल, कॉलेजियम हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की एक व्यवस्था है। ये व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट ने खुद तय की है। इसके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों के ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और चार अन्य सबसे सीनियर जजों का समूह फैसला लेता है।
इसी तरह हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की सिफारिश उस हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और दो सबसे सीनियर जजों का समूह करता है। इन सिफारिशों की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और दो सबसे सीनियर जज करते हैं। इसके बाद ये नाम राष्ट्रपति के पास जाता है। जजों के समूह यानी कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों को सरकार राष्ट्रपति के पास भेजती है। इन सिफारिशों को मानना राष्ट्रपति और सरकार के लिए अनिवार्य होता है।
सरकार चाहे तो कॉलेजियम से एक बार ये अनुरोध कर सकती है कि वह अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करे, लेकिन कॉलेजियम ने वही सिफारिश फिर से भेज दी, तो सरकार के लिए उसे मंजूर करना जरूरी होता है। यानी कॉलेजियम सिस्टम में सरकार की भूमिका सलाह देने या अपनी असहमति जताने तक सीमित है। इसे मानना या न मानना जजों के समूह के हाथ में है।
सरकार की क्या आपत्ति है?
कुछ दिन पहले एक चैनल को दिए इंटरव्यू में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर सात बड़े सवाल खड़े किए थे।
1. कॉलेजियम सिस्टम संविधान की व्यवस्था के खिलाफ है।
2. जजों की नियुक्ति जजों का नहीं, सरकार का काम है। जजों द्वारा जजों की नियुक्ति का सिस्टम दुनिया में कहीं और नहीं है।
3. कॉलेजियम सिस्टम के कारण जजों के बीच राजनीति ज्यादा होती है। जजों में गुटबाजी होती है।
4. जज फैसला लिखने से ज्यादा ध्यान इस बात पर लगाते हैं कि कौन जज बने?
5. कॉलेजियम के चलते भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि ज्यादातर जज अपने रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों की ही सिफारिश जज बनाने के लिए करते हैं।
6. कॉलेजियम सिस्टम आने से पहले यानी 1993 से पहले जो व्यवस्था थी, उससे बेहतर जज बन रहे थे और विवाद भी कम होता था।
7. कॉलेजियम के चलते दलित-पिछड़े वर्ग के लोगों को न्यायपालिका में जगह नहीं मिल पा रही है।
केंद्र सरकार की लिखी चिट्ठी में क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से 16 जनवरी को केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था। सूत्रों के अनुसार, इसके जरिए कानून मंत्री ने कॉलेजियम में अपना प्रतिनिधि शामिल करने की बात कही थी।
इसके बाद केंद्र सरकार की आपत्तियों का जवाब देने के लिए चीफ जस्टिस की अगुवाई में कॉलेजियम ने तय किया कि इस बार सारे मामले को सार्वजनिक किया जाए। यह भी तय किया है कि कॉलेजियम की सिफारिशों में केंद्र सरकार की आपत्तियों, रॉ और आईबी की रिपोर्ट का भी हवाला दिया जाए। इसके अलावा ऐसे मामलों में कॉलेजियम की राय को भी सिफारिशों में शामिल किया जाए।
क्यों हो रहा सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार में विवाद?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कई बार आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार जानबूझकर जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में देरी करता है। आरोप है कि बेवजह उन नामों को रोका लिया जाता है, जिसे कॉलेजियम की तरफ से भेजा जाता है। इससे जजों की नियुक्ति में देरी होती है।
कॉलेजियम की ओर से प्रस्तावित कई नामों पर तो विवाद भी हो चुका है। ऐसा ही एक मामला अभी सामने आया है। इसमें कॉलेजियम ने 11 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल को जज के तौर पर नियुक्ति देने की सिफारिश की थी। केंद्र सरकार ने इस सिफारिश पर आपत्ति जताई थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से उनके नाम पर फिर विचार करने के लिए कहा था।
सौरभ भारत के पूर्व CJI बीएन कृपाल के बेटे हैं।पिछले साल, भारत के तत्कालीन CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने सौरभ के नाम की जज के लिए सिफारिश की थी। कॉलेजियम के एक बयान में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट में जज के रूप में सौरभ की पदोन्नति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। लेकिन केंद्र सरकार ने इस सिफारिश पर फिर से विचार करने के लिए कह दिया।
केंद्र ने कहा कि सौरभ की जगह किसी दूसरे का नाम भेजा जाए। बताया जाता है कि समलैंगिक सौरभ के पार्टनर यूरोप से हैं और स्विस दूतावास में काम करते हैं। विदेशी पार्टनर होने के चलते इंटेलीजेंस ब्यूरो ने भी सौरभ के खिलाफ ही रिपोर्ट दी। केंद्र सरकार ने इसी रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा का हवाला देते हुए सौरभ के नाम पर फिर से विचार करने के लिए कॉलेजियम को कह दिया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट का कोलेजियम भी अड़ गया है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई सीनियर जजों से बात की। उन्होंने कॉलेजियम में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ से 18 जनवरी को चर्चा की। इसके बाद 19 जनवरी को चीफ जस्टिस ने इस मसले पर भविष्य में होने वाले मुख्य न्यायाधीशों से भी चर्चा की है। इसके बाद फैसला लिया कि जिन नामों पर फिर से विचार करने के लिए केंद्र सरकार ने कहा है, उन्हीं नामों की फिर से सिफारिश भेजी जाएगी।